Thursday, December 8, 2011

आत्म संतुष्टि ...


जाने क्यूँ रात-दिन,
अनजाने सपने सजाती हूँ !
आंख खुलते ही,
खुद से तुझे दूर पाती हूँ !
रोम-रोम में बसे हो,
जेहन में तुमको पाती हूँ !
नज़रों का धोका है ?
पर मन का विश्वास कर जाती हूँ !
उफ़ ये रिवाजों की बंदिशें क्यूँ,
तेरी बातों से आत्म संतुष्टि को पाती हूँ !

Tuesday, November 29, 2011

पैर बंधे जंजीरों में ...

दूर खड़ा एक परदेशी,
देश की यादों में खोया !
पैसों की ललक में बन परदेशी,
खुली - खुली आँखों से सोया !
शौहरत की खुशियाँ पल भर की,
याद में अपनो की रात - रात रोया !
वतन लौटने की कशमकश है वो,
पर पैर बंधे जंजीरों में पाया !
यही कसक है परदेशियों की,
यहाँ गरीबी में भी खुशियाँ है छाया !

मुकेश गोस्वामी हृदयगाथा : मन की बातें

Saturday, November 26, 2011

इस "रिश्ते" को क्या नाम दूँ ...


"ख्याल" जो आये
ह्रदय में
"तरंगें" लहरा जाती है
यादें तेरी
"मन" की हलचल
ठहरा जाती है,
बातें सुनकर
"आत्मा"
"तृप्त" क्यूँ हो जाती है ?
क्या ? इश्क-ए-जूनून
ऐसे ही होता है ?
मन में
"असमंजस" होता है
डर क्यूँ लगता है
प्रेम की "परिभाषा"
में उलझ जाती हूँ
इस "रिश्ते" को
क्या नाम दूँ
समझ नही पाती हूँ

मुकेश गोस्वामी "हृदयगाथा"

Monday, November 21, 2011

ख्वाहिश है...


खुशियाँ घेर रखी है, जीवन को
देख तुम्हे मुस्काने की ख्वाहिश है

सजाओ मांग मेरी, फरमाइश है
दुल्हन बनू मैं तेरी, ख्वाहिश है

कठिन रास्ते हो, परवाह नहीं है
हमराह बनू, संग-संग चलूँ ख्वाहिश है

तुम्हारी जुदाई कैसे सह सकुंगी,
दासी बनू चरणों की ख्वाहिश है


Friday, November 11, 2011

प्यार का साथ बांकी है


बीता महज पॉँच - दस साल ही है,
यादें तो कल की लगती है !
निगाहों में ताकत रहती थी देखने की,
तो तुम्हे छुप छुपकर ताकना !
तेरे घर के राहे-चौराहे बैठ,
मूंगफल्ली और चने दिन भर फांकना !
सुबह ताजी हवा लेने तुम जाती हो,
ये जानकर तेरे मुहल्ले पहुँचकर हांफना !
किताबे तेरी चुराकर,
फूल गुलाबों के टांकना !
क्या ये मुहब्बत नहीं लगती थी,
तेरे बालकनी से तुम्हे झांकना !
समय बीत गया अहसास बांकी है,
अब तलक तेरे प्यार का साथ बांकी है !

Thursday, November 10, 2011

मुस्कुराहट की तलाश में...


कैसी होगी तुम अब,
ये सोच के दिल घबरा जाता है
तू आएगी कब,
इन्तिज़ार में आंखे पथरा जाता है
बिछुड़कर तुम्हें फर्क पड़ा नही,
ऑंखें मेरा नम हो जाता है
मुस्कुराहट की तलाश में,
मेरा दिल संभल जाता है
सांसें रुकती नहीं,
पर धडकन थम सा जाता है


Wednesday, November 2, 2011

चंद लम्हे ...


नज़रें ढुढती है तुम्हे,
नज़रों से नजराना दे दो !

कोई कहानी नहीं जिंदगी में,
जुबान से अफसाना दे दो !

सुकून की तलाश में भटक रहा हूँ,
दिल का ऐतबार दे दो,

पतझड़ सा जीवन है,
जिंदगी की बहार दे दो !

चंद लम्हे की जिंदगी है,
झूट ही सहीं एक बार कह दो !

Tuesday, November 1, 2011

माँ की दुआ...


माँ तो सिर्फ माँ होती है,
माँ की दुआ तो जन्नत से है अनमोल !

रूठकर जाते हो माँ से ऐसे क्यूँ,
आना होगा माँ के क़दमों में दुनिया है गोल !

माँ मिलती नहीं बाज़ारों में,
उसकी ममता को पैसों से न तोल-मोल !

माँ की दुआ तो होती ही है "दुआ",
बददुआ में भी बेटे के लिए दुआ ही होती है,

ये तू क्या समझेगा मुर्ख,
माँ तुझसे बिछुड़ के कितना रोती है !

Friday, October 28, 2011

अजीब बंदिशें....



तेरी तारीफ मैं करूँ कैसे,
अजीब बंदिशें लगा रखी है !
जिंदगी की तलाश किन राहों में करूँ,
मौत की बिसात फैला रखी है !
दम घुट जायेगा क्या इस तरहा,
जहरीली हवा जो बहा रही है !
तेरी आँखों की के इशारों को समझूँ .
या लडखडाते लबों को जो दास्ताँ कह रही है !

मुकेश "हृदयगाथा"

Wednesday, October 19, 2011

देश के लिए.....



जिंदगी जी सकूँ,
कुछ ऐसा ज्ञान दो
देश के लिए कुर्बान हो जाये,
ऐसी शान दो
गौरवन्वित हो मस्तक मेरा,
ऐसा कोई काम दो
जिन्दगी गुजरा संघर्षमय,
अब कुछ आराम दो

Sunday, October 16, 2011

मैं रूठ तो जाऊँ.....


मैं रूठ तो जाऊँ, वो मनाने नहीं आते !
इश्क के वादों को, निभाने नहीं आते !
नाराज़ हो कर क्या, तुम खुश रह पाओगे !
छुप-छुपके आँशु, क्या नहीं बहाओगे !
फिर प्रिये, ऐसे दिखावे के लिए क्यूँ रूठना !
फिर दिखावटी बातों को, यूँ क्यूँ गुथना !
चलो अपनी खिलखिलाहट को, बिखेर दो !
मौसम में खुशियाँ घोल, बाँहों में समेट लो !

Saturday, October 15, 2011

जिंदगी बीत जाये...

जरा झूम के बरसो रे मेघा ये बादल
सजनी के आँखों का मैं बन जाऊं काजल
खनक जाऊं मैं उसकी हाथो में बनके कंगना
जिंदगी बीत जाये बाँहों में मौत आये भी तो उसके आंगन


कारवां चौथ के अवसर में चंद पंक्तियाँ


मेरी चाँद तू
दूर कहाँ खामोश है,
दीदार-ये-चाँद का,
ये कैसा जोश है,
प्रेम की हवा चल रही है,
सभी मदहोश है,
मिलन की बेला आ गई,
तू आई न अब तलक अफ़सोस है !

Thursday, October 13, 2011

छलकने दो अरमानो को..



झुकी-झुकी सी
पलकों में,
तन्हाई को क्यूँ
इतना समेटे हो
छलकने दो
उन अरमानो को
दोनो नैनों से
दर्द को इतना क्यूँ
अपने दामन में लपेटे हो


Wednesday, October 12, 2011

इसी बात का है मुझे गुरुर...


अजीब ख्यालात से
मन व्याकुल हुआ जा रहा है
जैसे स्कुल के प्रांगण
में तू खिल खिला रहा है
क्यूँ मेरी आंखे आज भी
तेरी झलक पाने को
बेताब हुये जा रहा है
तेरी शरारतों को
सोच कर लगता है
कल की ही तो बात है
सिर्फ आज ही तो
जुदाई की काली रात है
कल फिर सड़क से गुजरते
तू दिखेगा तो जरुर
तू मेरे घर के चक्कर लगता है
इसी बात का है मुझे गुरुर
हाँ यकीन है,
तुम्हारी नज़र खोजती है,
सिर्फ मुझे
पाने की दुआ करती हूँ,
मेरा जीवन अर्पण है
सिर्फ तुझे
बिछड़ के कैसे
जिंदगी जी सकुंगी तुमसे
सोच के
जिया कसमसा जाता है
बैचैनी रात भर तडपाती
और
इसी तरह
दिन निकल जाता है !!!

Friday, September 30, 2011

आईना : "मैं हूँ तेरा सच्चा हमदर्द"


जब तू रोती है, तो मैं भी रोता हूँ,
जब तू हंसती है, तो मैं भी हँसता हूँ
जब उदास होती है, तो मैं भी उदास हो जाता हूँ
जब मेरे पास दिखती हो, तो मैं साथ हो जाता हूँ
जब दूर तुम जाती हो, तो तन्हा हो जाता हूँ
जब तरह-तरह के श्रृंगार करती हो, तो मैं भी संवर जाता हूँ

Thursday, September 29, 2011

.....तुम्हे तो इश्क है.....


तुम्हे तो इश्क है, मुझे भी इश्क है

इश्क तो इश्क है, सभी को इश्क है

इश्क खुदा से है तो इबादत है

इश्क मनुष्य से है तो इंसानियत है

इश्क माँ से है तो सेवा है

इश्क बाप से है तो आज्ञा है

इश्क बहन से है तो जिम्मेदारी है

इश्क भाई से है तो हिम्मातदारी है

इश्क पडोसी से है तो खिदमतगारी है

इश्क तुमसे है तो तीमारदारी है... ?

इश्क मुझसे है तो बीमारी है ...?

Wednesday, September 28, 2011

क्या है इश्क...?


इश्क दरिया है,
तो मैं डूब जाना चाहूँगा
इश्क जंग है,
तो मैं लड़ना चाहूँगा
इश्क इबादत है,
तो मैं सजदा करना चाहूँगा
इश्क ज़हर है,
तो मैंने पीना चाहूँगा
इश्क आग है,
तो मैं जल जाना चाहूँगा
इश्क जुदाई है
तो मैं तन्हा होना चाहूँगा
इश्क जुर्म है
तो मैं अपराधी बनना चाहूँगा
इश्क वफ़ा है
तो मैं निभाना चाहूँगा
इश्क जिंदगी है,
तो मैं जीना चाहूँगा
इश्क ग़र "मौत" है,
तो भी मैं तुझे पाना चाहूँगा

Wednesday, September 21, 2011

नजर-नजर


नजर-नजर हवा चली,
टपक रहा है रस !
एक दिल की क्या बात है,
मिलेंगे तुझको दस !
ज्यादा लिखने की आदत नहीं,
ये भी है सच !
हसो खुलके साथ हमारे,
अरमान यही है बस !

" कोई मुसाफिर "

चाँद आज क्यूँ मायूस है,
सितारे क्यूँ खामोश है !
चल रही पवन धीमे-धीमे क्यूँ,
कैसा ये अहसास है !
दूर ठहरा है कोई मुसाफिर,
परदेशी अनजाना है !
क्या जादू है उसमे,
दिल ने क्यूँ उसको अपना माना है !

Thursday, August 25, 2011

मेरा गाँधी महान "आत्म मंथन"



मोहन दास करमचन्द गाँधी, उर्फ़ महात्मा गाँधी, उर्फ़ बापू एवं राष्टपिता, ये सब नाम उनके हैं जिसे समस्त हिंदुस्तान के लोग जानते हैं और जो नहीं जानते होंगे शायद वो हिन्दुस्तानी नहीं होंगे..! गाँधी जी को राष्टपिता कहा जाता था मैंने बचपन से पढ़ा था मुझे इस शब्द में आपत्ति लगती थी व्यक्ति कितना भी महान हो राष्ट पिता कैसे कहा जा सकता है..? भारत के इतिहास में बहुत बड़े बड़े महापुरुष हुये लेकिन उनमे से सिर्फ गाँधी जी को राष्टपिता कहा गया ! 16 अगस्त से अन्ना हजारे ने अभियान चलाया शुरुवात में देश भर के लोग उनके इस आन्दोलन को हलके में ले रहे थे ...लेकिन अभी दिखिए कौन उन्हें सपोर्ट नहीं कर रह है.....सरकार के कुछ जातिवादी लोग ने सरकार के कहने से इस आन्दोलन को मजहब के खिलाफ बताया....जबकि सत्य ये है कि किसी भी व्यक्ति के लिय धर्म से बड़ा देश होता है (ये सभी धर्म ग्रंथों में स्वसिद्ध है) उसके बाद भी समय समय पर चंदफायदे के कारण कुछ लोग समाज के एक वर्ग को धर्मान्धता सिखाते हुये देश द्रोही बनाने का प्रयास करते हैं.... लेकिन सबसे ख़ुशी कि बात ये हैं कि हमारे देश के सभी जाति धर्म के लोग अब इस तरह के बातों को नज़र अंदाज़ करते हैं बल्कि इस बार मैंने अख़बारों में ये पढ़ा कि इस तरह के बात करने वाले धर्म गुरुओं को विरोध झेलना पढ़ा है !
मैं गाँधी जी के मुद्दे में आता हूँ मैंने कुछ दिन पूर्व एक बात पोस्ट कि थी कि आजादी हमें अहिंसा से नहीं मिली हैं मैं उसमे अभी भी कायम हूँ लेकिन उसमे एक बात मैं जोड़ना चाहूँगा कि आज़ादी में गाँधी जी के भारत छोडो आन्दोलन का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था इस आन्दोलन ने देश के सभी वर्ग को आजादी मांगने /हासिल करने कि प्रेरणा दी ! उनके इस क्रांति से लोगों में जज्स्बा आया (पहले मैं इस तर्क से सहमत नहीं था) मैंने अपनी जीवन में कोई भी देशव्यापी आन्दोलन नहीं देखा था पहली बार श्री अन्ना हजारे जी द्वारा किये जा रहे आन्दोलन को मैंने देख रह हूँ, वो व्यक्ति जिनके प्रेरणा और आदर्श मोहनदास करमचंद गांधी है, सिर्फ उनके "अहिंसा परमो धर्मः" कि मान्यता/कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं तो पुरे देश कि जनता खड़ी हो गयी आज स्थित ये है कि अन्ना जी के एक एक शब्द लोगों को गीता/कुरान के उपदेश/सन्देश लग रहे हैं, इतनी ताकत है गाँधी जी के उन शब्दों और मान्यताओं में आज मुझे पूरा संपूर्ण विश्वास हो गया है ! गाँधी जी ने कभी भी हिदू और मुसलमान को अलग नहीं समझा वो हमेशा मानते थे कि दोनों एक ही कोख से पैदा हुये हैं और दोनों कि माता भारतमाता है, गाँधी जी ऐसे भीष्म पितामह थे जो हमेशा कौरव-पांडव दोनों के पक्ष में खड़े होते रहे यही कारण है कि लोग उन्हें अपने पिता तुल्य समझते हैं और उन्हें बापू कहते हैं, उनकी इसी महानता के कारण समस्त लोग उन्हें राष्टपिता कहते हैं और वो इसके सच्चे हक़दार भी हैं !

एक बात और जोड़ना चाहूँगा कि अन्नाजी के समर्थन में अब खुलके साथ देने का समय आ गया है, ये लड़ाई किसी धर्म के लिए नहीं है , किसी पार्टी के लिए नहीं है ये लड़ाई मानवता के लिए है, यहाँ रोज-रोज पल-पल भ्रष्टाचारियों द्वारा मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है शोषण किया जा रह है इसका खत्मा बहुत जरुरी है ये ऐसी समस्या है जो आतंकवाद और नक्सल वाद से भी गंभीर हैं !
एक बार फिर भारतवासियों ने दिखा दिया कि हम अहिंसा के पुजारी हैं इससे हमें नपुंसक ना समझे ! भारत के वीर ऐसे हैं जो बिना गोली चलाये और खून बहाए भी बड़ी-बड़ी लड़ाई जीते हैं और जीतेंगे...
वन्दे मातरम .....

Saturday, August 20, 2011

तू भी अन्ना मैं भी अन्ना ...





क्रांति पैसे से नहीं आती,

सच्चे विश्वास से आती है !

विधेयक खुद को बचाने बनाई जाती है,

देश को डुबाने के लिए बनाई जाती है !

फिर भी देश भक्ति की गीत जनता गाती है,

ऐसी कोशिश सरकार को क्यूँ नहीं भाती है !

भ्रष्टाचार को क्यूँ सर पर चढ़ाया जाता है,

सच्चाई के आगे तो देवता भी झुक जाता हैं !

Sunday, August 14, 2011

विस्फोटक विचार ->->


आप सभी को सादर अभिवादन .....स्वतंत्रता दिवस कि हार्दिक शुभकामनायें !
अब आते हैं मुख्य विषय पर सुप्रसिद्ध समाज सेवी जगत विख्यात श्री अन्ना हजारे जी के द्वारा सरकार को दिया गया तारीख 16 अगस्त नजदीक आ गया है...अन्ना एवं सहयोगियों ने पूर्व ही घोषणा कर दी है कि उल्लेखित तारीख को आज़ादी कि दूसरी लड़ाई प्रारंभ होगी, क्या देश इस समय इसके लिए तैयार है ? क्या हम सब तैयार हैं ?.....खैर क्या हममे भ्रष्टाचार खत्म करने कि सोच पैदा हो सकी है..? क्या अभी भी हम सभी स्व-स्वार्थ को छोड़ पाए हैं..? क्या अभी भी सिर्फ हमारी मानसिकता अपने बच्चो कि शिक्षा, नौकरी, तरक्की, आराम कि जिंदगी सोचती है, भले ही बहुत से लोग घुट-घुट के जी रहे हों ?..बेशक हम सभी लोगों कि मदद नहीं कर सकते ना ही सभी को दौलतमंद बना सकते लेकिन क्या हम मनुष्य होने कि नाते उनसे मनुष्यता पुर्वक व्यवहार नहीं कर सकते ? बिलकुल कर सकते हैं !
वास्तव में जो भ्रष्टाचार का नागा नाच (नंगा नाच) चल रह है वो दुर्भाग्यपूर्ण हैं, इसके शिकार गरीब अनपढ़ तो है ही जो अपने आपको बुद्ध जीवी और हाई-प्रोफाइल समझते हैं वो भी इस से ग्रस्त हैं..बड़ी-बड़ी बीमारी का इलाज़ मौजूद है, भ्रष्टाचार का इलाज़ क्यूँ संभव नहीं है ..? यदि हम सभी भारतवासी सामूहिक प्रयास करें तो ये संभव है... यदि हम कुछ दिनों के लिए एक साथ होकर भ्रष्टाचार का विरोध शांति पूर्वक करें तो ये बहुत आसानी से हो सकता है.. एक दिन / या कुछ दिन के लिए सभी हिन्दुस्तानी यदि काम बंद कर दें (स्वास्थ्यकर्मी और आपातकाल सेवाकर्मियों को छोड़कर) तो सरकार अपनी मनमानी छोड़कर सही रास्ते में आ जाएगी, लेकिन यहाँ भी मुख्य बात ये है क्या हम सभी देशवासी अन्ना और उनके साथी या ये कहें देश भक्तों कि टोली का साथ देंगे...? यदि इसका जवाब हाँ हैं तो देश के आने वाले नस्ल आपके आभारी रहेंगे और यदि नहीं तो दूसरों का छोडिये आपके खुद के बच्चों के लिए आप क्या भविष्य छोड़ने वाले हैं इस पर विचार करियेगा !
उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि आप अपनी समर्थ शक्ति के हिसाब से सच्ची स्वतंत्रता के लड़ाई में शामिल होंगे !
आप सभी को कोटिः कोटिः धन्यवाद
विनीत : भ्रष्टाचार से त्रस्त भारतीय

Thursday, August 11, 2011

मैं आऊंगा....



मुझे तो आदत सी हो गयी है दर्द सहने कि,

लेकिन तेरी ख़ामोशी का दर्द ना सह पाउँगा !

नसीब में कौन है ? ये तो वक्त ही बताएगा,
मिल गई तो ठीक वर्ना गीत जुदाई का गाऊंगा !

तुझसे मिलना है बाकि इस ख़ुशी पे जिन्दा हूँ,
ग़र मुझसे जुदा हो गयी तू सच में मर जाऊंगा !

तुझसे दूर हूँ ये सोच के ना घबराना,
मर भी गया तो मिलने तुझसे मैं आऊंगा !

Monday, August 8, 2011

< मंजिलें सफ़र >


एक बार जो,
हमारे साथ हो जाता है
बिछुड़ने से,
हमसे वो घबराता है
साथ हमारे गीत जिंदगी के
गुनगुनाता है
बस यूँ ही मंजिलें सफ़र में
बढ़ते जाता है

Sunday, July 24, 2011

मुझे जीना सिखाती हो तुम ...


मन क्यूँ उदास हो जाता है,
प्रेम के फेर में उलझ जाता है
मेरी असफलता पर तुम क्यूँ
उदास हो घबरा जाती हो
फिर खुश होकर मेरी सफलता पर
शांत हो जाती हो
जुदाई की कल्पना से ही तुम
मुझसे लिपट जाती हो
बहती है नीर अंखियन से पर
देख मुझे मुस्काती हो
क्या उलझन है ह्रदय में तुम्हारी !
क्यूँ नही बतलाती हो
ना समझी पर मेरे तुम
झूठा गुस्सा क्यूँ जताती हो
फिर क्यूँ मेरी सभी गलतियों को
भूलकर मुझे अपनाती हो
कुछ भी हो तुम्हे समझ जाता हूँ
और मुझे समझ जाती हो तुम
इसी तरह हर लम्हा जिन्दगी का
मुझे जीना सिखाती हो तुम

Sunday, June 26, 2011

जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !


तेरी यादों को ले गुजरते हैं, चौड़ी सड़कों से,
फिर क्यूँ सड़कें संकरी सी लगती है !
कमरे को सजाया है फूलों-पत्तों से,
फिर भी जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !
वाह ! क्या रंग बिरंगी है दुनिया तेरी "......",
बिछड़ के तुमसे जीवन क्यूँ फीकी सी लगती है !
साथ तेरा जब-जब होता है,
दुनिया सारी जीत गयी सी लगती है !
जब भी तन्हाई होती है ,
तब मेरी हस्ती मिट गयी सी लगती है !
आँखों में तेरी कशिश है वो,
कि ये दिल खींचीं-खीचीं सी लगती है !
मैं तो ठहरा बुद्धू अनाड़ी,
तेरी सोहबत से कुछ-कुछ सीखी सी लगती है !
दर्द भरा है सीने में लेकिन,
जब करीब होती हो तब बेफिक्री सी लगती है

Wednesday, June 15, 2011

मन की बात चंद पंक्तियों में ...


ये वक़्त का तकाज़ा है या नसीब का खेल
सच्चे ईमानदार क्यूँ होते जा रहें हैं फेल
कैसी ये राजनितिक समीकरण है कैसा ये भ्रष्टाचार से मेल
क्यूँ बढ़ रहा है जुर्म अपराधियों को होती नहीं क्यूँ जेल
...........................
कैसा ये सत्ता का मोह है,
खुद
कि मातृभूमि पर करते कुठाराघात है !
कौन सी कोंख से देश द्रोही पैदा होते,
क्या इनकी जात है !
गरीबों का खून चुसना,सच्चों का दमन करना,
इनके लिए शाबासी कि बात है !
ये देश को खोखला करने कि,
चाहत का अभी सिर्फ शुरुवात है !
...........................
वह क्या बात है !
वह भारत के निति-निर्धारकों तुम्हारी क्या बात है
कसाब को दामाद बनाते निर्दोषियों को सूली पर चढाते
वह क्या बात है !
हवाला कि हवा चली थी तब सूटकेस पर नज़र जमी थी
बदकिस्मती देश कि भ्रष्ट लोगों के नीचे सच्चों कि बारात है
वह क्या बात है !
...........................
सत्याग्रह को ग्रहण लग गया अत्याचारी राहूओं से !
क्या ऐसा हो नहीं सकता उखाड फेकें इन्हें सबल भुजाओं से !!

मेरे शब्दों को सम्हाल लो कविता बनकर...


चलो तुम्हे अब कोई नाम दे ही दूँ...
कब तक फिरती रहोगी अनामिका बनकर

कब तक कान तरसेंगे तेरी बोल सुनने को...
चलो अब सुना दो कुछ तुम सुनीता बनकर

कब तक सुनी रहेगी जिंदगानी इस तरह...
चलो अब कोई तान छेड़ दो संगीता बनकर

कब तक मेरी ऑंखें अंधकारमय रहेंगी...
चलो अब सूरत प्यारी दिखा दो सुनयना बनकर

कब तक प्यासी रहेगी जिह्वा मेरी...
चलो अब प्यास बुझा दो सरिता बनकर

कब तक मेरी फरियाद ठुकराई जाएगी...
चलो अब मेरी प्रार्थना सुन लो विनीता बनकर

कब तक जिंदगी के जंग में संघर्ष करता रहूँ...
चलो जीत लो मेरी जिंदगानी तुम रंजीता बनकर

कब तक मेरे अल्फाज़ लडखडाते रहेंगे...
चलो अब मेरे शब्दों को सम्हाल लो कविता बनकर

Saturday, June 4, 2011

हम तो पानी अन जी...


हम तो पानी अन जी
दूध म मिलाहु ता दुध बन जाबो
दही म मिलाहु ता दही बन जाबो
हम तो पानी अन जी
प्यास लगही ता प्यास बुझबो
आगि लगही तो वोहू ला बुझबो
हम तो पानी अन जी
तबियत बिगाड़ही ता दवाई म मिला लव दवाई बन जाबो
अऊ कहूँ दारू म मिलाहु ता दारू बनके मस्ती ला चढ़हाबो
हम तो पानी अन जी
अमृत म मिलाहु ता सबके जान बचाबो
ज़हर म डारहु ता सबके काल ला संग म लाबो
हम तो पानी अन जी
नाली म बोहा हु ता गन्दगी बढ़ाहबो
खेत म डारहु ता खुशाली ला लाबो
हम तो पानी अन जी
बचा हु कहूँ मोला ता हरियाली हा आही
नई बचाहु ता चारो मुड़ा सुख्खा बढ़ जाही
हम तो पानी अन जी
गंगा जल म मिलाहू ता गंगा जल बन जाबो
अरपा नदिया म बोहहू ता सोझ्झे पानी कहाबो
हम तो पानी अन जी
हमन पानी अन-पानी अन
औ पानीये रहिबो
दरद जम्मो दुनिया के ला सहीबो
हम तो पानी अन जी

Tuesday, May 31, 2011

भ्रष्टाचार :Vs: भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार : क्या है, भ्रष्टाचार कैसा है, चारो तरफ सिर्फ लोग भ्रष्टाचार का विरोध कर रहें है, कौनसे भ्रष्टाचार का विरोध कर रहें हैं ? आईये इसे जानने का प्रयास करते हैं !

भ्रष्टाचार क्या है ?
भ्रष्टाचार शब्द के योग में दो शब्द है, भ्रष्ट और आचार ! भ्रष्ट का अर्थ है बुरा या बिगड़ा हुआ और आचार का अर्थ है आचरण ! भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ - वह आचरण जो किसी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो है ! (दुसरे शब्दों में कहें तो इन्सान के द्वारा किया गया वह कार्य जो व्यक्ति,समाज, देश और विश्व के लिए नुकसान दायक हो वो भ्रष्टाचार है !) हमारे देश में भ्रष्टाचार दिनों दिन सुरसा कि मुख कि भांति बढता ही जा रहा है, यह हमारे समाज और राष्ट्र के सभी अंगों को बहुत ही गंभीरता पूर्वक प्रभावित किये जा रह है ! राजनिति, समाज, धर्म, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, व्यापार, उद्योग, कला, प्रशासन आदि में भ्रष्टाचार कि पैठ आज इतनी बढ़ चुकी है कि इससे मुक्ति मिलना बहुत कठिन लग रहा है ! चारो तरफ दुराचार, व्यभिचार, अनाचार आदि ये सभी भ्रष्टाचार के प्रति रूप हैं जिन्हें हम अलग-अलग नामो से जानते हैं लेकिन वास्तव में ये सभी भ्रष्टाचार कि ही जड़ें हैं ! इसलिए भ्रष्टाचार के कई नाम रूप हो गये हैं लेकिन उनके कार्य और प्रभाव लगभग सामान हैं या एक - दुसरे से मिलते-जुलते हैं !

भ्रष्टाचार के क्या कारण हो सकते हैं ?
यह सर्वविदत है, भ्रष्टाचार के मुख्य कारणों व्यापक असंतोष पहला कारण है ! जब किसी को कुछ आभाव होता है और उसे वह आभाव अधिक कष्ट देता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है ! भ्रष्टाचार का दूसरा कारण स्वार्थ सहित परस्पर असमानता है , यह असमानता चाहे आर्थिक हो , सामाजिक हो या सम्मान पद प्रतिष्ठा आदि में से जो भी हो ! जब एक व्यक्ति में मन में दुसरे व्यक्ति के लिए हीनता और जलन कि भावना उत्पन्न होती है तो इस बीमारी से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने को बाध्य हो जाता है ! अन्याय और निष्पक्षता के अभाव में भी भ्रष्टाचार का जन्म होता है ! जब प्रशासन या समाज किसी व्यक्ति के प्रति अन्याय करता है , उसके प्रति निष्पक्ष नही हो पता है तब इस से प्रभावित हुआ व्यक्ति या वर्ग अपनी दुर्भावना को भ्रष्टाचार को उत्पन्न करने में लगा देता है ( उदाहरण के लिए किसी अच्छे खिलाडी को खेलने का मौका नहीं दिया जाता तो वो भ्रष्टाचार करने के लिए प्रेरित हो जाता है, या कम पैसा मिलने पर भी वो ऐसा कर सकता है)
ठीक इसी तरह से जातीय , साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भाषावाद, भाई-भातिजवाद (मतलब किसी एक वर्ग को फायदा दिलाने कि वजह से) के फलस्वरूप भ्रष्टाचार का जन्म होता है जिस से चोर बाज़ारी , सीनाजोरी, दलबदल , रिश्वतखोरी, बेईमानी, धोका-धडी अव्यवस्थाएं प्रकट होती है !
हमारे देश में बेरोजगारी और बढती हुयी जनसँख्या के असीमित होने के कारण महंगाई और भ्रष्टाचार को खूब बढ़ावा मिला है ! रिश्वत सिफारिश , अनुचित साधनों का प्रयोग, स्वर्थपरता, आदि के कारण ये समस्या दुगनी गति से बढ़ रही है ! बेरोजगारी कि वजह से युवा वर्ग शोर्टकट के चक्कर में अनैतिक कार्य में चले जाते हैं !

भ्रष्टाचार के कुपरिणाम स्वरुप समाज और राष्ट में व्यापक रूप से असमानता और अव्यवस्था का उदय होता है , इससे ठीक प्रकार से कोई भी कार्यपद्धति चल नहीं पाती है और सबके अन्दर भय , आक्रोश और चिंता कि लहरें उठने लगती है ! असमानता का मुख्य प्रभाव यह भी होता है कि यदि एक व्यक्ति या वर्ग बहुत प्रसन्ना है तो दूसरा वर्ग बहुत निराश और दुखी हो जाता है ! भ्रष्टाचार के वातावरण में ईमानदारी और सत्यता तो गायब हो ही जाते हैं और उनके स्थान पर केवल बेमानी और कपट का प्रचार और प्रसार होने लगता है इसलिए हम कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार का सिर्फ दुष्प्रभाव ही होता है और इसे दूर करना एक बड़ी चुनौती है ! भ्रष्टाचार के द्वारा दुष्प्रवित्तियों और दुष्चरित्रता को ही बढ़ावा मिलता है और इसे सचारित्रता और सदप्रवृति कि जड़े सूखने लगती हैं , यही कारण है कि भ्रष्टाचार कि राजनितक , आर्थिक , व्यापारिक , प्रशासनिक , और धार्मिक जड़े इतनी गहरी और मजबूत हो गयी है कि इन्हे उखाड़ना और इनके स्थान पर साफ-सुथरा वातावरण का निर्माण करना आज प्रत्येक राष्ट्र के लिए लोहे के चने चबाने के सामान कठिन है !
नकली सामन बेचना , खरीदना , वस्तुओं में मिलावट करते जाना , धर्म का नाम लेकर अधर्म का आश्रय ग्रहण करना , कुर्सीवाद का समर्थन करना और स्वार्थवश दलबदल करना , दोषी और अपराधी लोगों को घुस लेकर छोड़ देना उन पर क़ानूनी करवाई ना करना , रिश्वत लेकर निर्दोष लोगों को गिरफ्तार करना , किसी पद कि प्राप्ति हेतु निश्चित सीमा में निर्धारण करके पैसे का लेन-देन , पैसे के मोह में आकर हत्या और लूटमार को अंजाम देना , प्रदर्शन , लूटपाट , चोरी , कालाबाजारी एवं तस्करी ये सब भ्रष्टाचार के मुख्य कारण है !

भ्रष्टाचार को कैसे रोका जाये ?
भ्रष्टाचार कि जड़ों को उखाड़ने के लिए सबसे पहले ये आवश्यक है कि हम इसके दोषी तत्वों को ऐसी कड़ी से कड़ी सजा देन कि दूसरा भ्रष्टाचारी फिर से सिर ना उठा सके ! इसके लिए सबसे सार्थक और सहीं कदम होगा प्रशासन का सख्त और चुस्त होना , न केवल सरकार अपितु सभी सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं , समाज के ईमानदार , कर्ताव्यानिष्ट सच्चे सेवकों और मानवता एवं नैतिकता के पुजारियों को प्रोत्साहित करना होगा और उन्हें पारितोषिक देकर भ्रष्टाचारियों के हीन मनोबल को प्रेरित करना चाहिए जिससे सच्चाई , कर्त्तव्य और कर्मठता कि वह दिव्य ज्योति जल सके जो भ्रष्टाचार के अंधकर को समाप्त करके सुन्दर प्रकश कर सके !!!

उपसंहार...
"हमारी कमजोरी ही हमारी ताकत होती है और हमारी सबसे बड़ी ताकत कभी कभी कमजोरी बन जाती है" दुसरे शब्दों में कहें अपनी कमजोरी को दूर कर अपनी ताकत बनायें ! जब भारतवर्ष आजाद हुआ उस समय देश कि स्थिति कानून और विधेयक बनाने कि अनुकूल नहीं थी फिर भी जैसे-तैसे बुद्धजीवियों ने यथा स्थिति कानून बना लिया परन्तु देश कि स्थिति स्वतंत्रता के लगभग 64 वर्ष बाद पूर्णतः परिवर्तित हो गयी है अब हमें नए कानून और अधिकारों कि आवश्यकता है , समय के अनुसार परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है लेकिन हमारे भ्रष्टा नेता और निति निर्धारक पुराने कानूनों कि आड़ में देश को खोखला कर रहें हैं और हम सभी मूक दर्शक बने देख रहें हैं , इसके अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं है ! देश स्वतंत्र तो हो गया लेकिन अभी भी हम परतंत्रता सी आग में जल रहें हैं आम नागरिकों के पास अधिकारों कि कमी है यदि कानून में अधिकार दिये भी गये हैं तो कितने प्रतिशत लोगों को जानकारी है ? नहीं है जिसका लाभ प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर उठा रहा है !
संक्षेप में मैं ये कहूँ कि हम सभी किसी ना किसी स्तर पर भ्रष्ट हैं या जाने अनजाने भ्रष्ट्राचार को समर्थन दे रहे हैं अन्यथा भ्रष्टाचार इतना विकराल रूप धारण नहीं करता अब समय आ गया है कि खुद को हम बदलें !
क्यूँ कि "हम बदलेंगे -युग बदलेगा , हम सुधरेंगे युग सुधरेगा "

आपके नजरिये से भ्रष्टाचार कि श्रेणी में क्या क्या आते हैं बताएं ? ताकि हमें भ्रष्टाचार के सभी चेहरों का ज्ञान हो !!! आपके विचारों का इंतिज़ार होगा , जल्दी बताने का प्रयास करें ...
धन्यवाद..

Thursday, May 26, 2011

सूरत-ए-हिंदुस्तान बदलनी चाहिए...


कब तक भारत माँ भ्रष्टाचार के धुएं में घुटती रहेगी
कब तक सज्जनों कि लुट्या डूबती रहेगी
कब तक हम अपने आक्रोश को दमन करते रहेंगे
कब तक ज़ुल्म इन गद्दारों का सहते रहेंगे
कब तक खून-पसीने कि कमाई उनके जेब में भरते रहेंगे
कब तक हम मजहब-जातिवाद में आकर लड़ते रहेंगे
भ्रष्टाचारी ग़र हम नहीं हैं तो ये बीमारी जड़ से उखाड़नी चाहिए
अब वक्त का तकाज़ा है, ऐसी अमरबेल नहीं फलनी चाहिए
अब तो सूरत--हिंदुस्तान बदलनी चाहिए
हमें एक और आज़ादी कि जंग लड़नी चाहिए
श्री अन्ना हजारे और श्री रामदेव बाबा के प्रेरणा से लिखा गया है !उन्हें कोटि-कोटि धन्यवाद

Monday, May 23, 2011

ह्रदय में खुशियाँ लागी है !


जिंदगी कि तलाश में मौत से भी हम दो चार हुए,
तेरी खातिर तो हम दुनिया वालों के लिए बेकार हुए !

प्यास बुझाने के खातिर जहर भी को भी गले उतार गये,
सपने को सच करने कि ललक में सच्चाई को ही मार गये !

जाने क्यूँ नफरत करने वाले ही हमको संवार गये ,
फिर से कुछ लोग मुहब्बत से बन्दे को बिगाड़ गये !

क्या मिल गया उनको जो सपनो कि बगिया उजाड़ गये ,
ना शुकरों ने जिन्दा ही हमें ज़मीन में गाड़ दिये !

फिर लौटा सपनो का सौदागर नई उम्मीदे जागी है ,
उसके शीतल दिल में आग नई कोई जागी है !

चिंता अब उसके मन से कोसों दूर भागी है ,
नव जीवन का उदय हुआ ह्रदय में खुशियाँ लागी है !