वृष्टि होती है शबनम की जब तुम मुस्काती हो, सच कहूँ तुम दिल को भाती हो!
शायद ना हो कोई ऐसा जिसे तुम न सताती हो, फिर लाड-प्यार से क्यूँ मानती हो!
लीला तुम्हारी बचपन की देखकर सब मुस्काते थे, अब गंभीर क्यूँ बन जाती हो!
........सच कहूँ फिर भी तुम मेरे मन को बहुत भाती हो
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