Tuesday, April 26, 2011

विष का प्याला पिला ही दो...



प्रेम कि नैया पार लगा दो,
सूखे ह्रदय
में प्रेम क़ी सरिता बहा ही दो !

निगाहें
मिला अपना बना दो,
चलो अब रेगिस्तान में कमल खिला ही दो !

अग्नि
सरि की बुझा दो या
अब
दरिया--आग से तुम पार करा ही दो !

पपीहे
की प्यास बुझती नहीं नदी-तालाबों से,
चलो अब स्नेह कि बारिश करा ही दो !

तन्हा
चला हूँ राहे जिंदगी में,
चलो अब संग चलकर
मेरी तन्हाई को मिटा ही दो !

जिंदगी
की ख्वाहिश नहीं बिन
तेरे,
चलो अब मुझे विष का प्याला पिला ही दो !

2 comments:

  1. अच्छा प्रयास है..परन्तु विषय का चयन उत्कृष्ट नहीं है कृपया कविता को दुसरे विषय में भी लिखने की कोशिश करें !
    धन्यवाद !!!

    ReplyDelete
  2. भावपूर्ण प्रस्तुति.

    ReplyDelete