Sunday, June 26, 2011

जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !


तेरी यादों को ले गुजरते हैं, चौड़ी सड़कों से,
फिर क्यूँ सड़कें संकरी सी लगती है !
कमरे को सजाया है फूलों-पत्तों से,
फिर भी जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !
वाह ! क्या रंग बिरंगी है दुनिया तेरी "......",
बिछड़ के तुमसे जीवन क्यूँ फीकी सी लगती है !
साथ तेरा जब-जब होता है,
दुनिया सारी जीत गयी सी लगती है !
जब भी तन्हाई होती है ,
तब मेरी हस्ती मिट गयी सी लगती है !
आँखों में तेरी कशिश है वो,
कि ये दिल खींचीं-खीचीं सी लगती है !
मैं तो ठहरा बुद्धू अनाड़ी,
तेरी सोहबत से कुछ-कुछ सीखी सी लगती है !
दर्द भरा है सीने में लेकिन,
जब करीब होती हो तब बेफिक्री सी लगती है

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