Sunday, June 26, 2011

जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !


तेरी यादों को ले गुजरते हैं, चौड़ी सड़कों से,
फिर क्यूँ सड़कें संकरी सी लगती है !
कमरे को सजाया है फूलों-पत्तों से,
फिर भी जाने क्यूँ वीरानी से लगती है !
वाह ! क्या रंग बिरंगी है दुनिया तेरी "......",
बिछड़ के तुमसे जीवन क्यूँ फीकी सी लगती है !
साथ तेरा जब-जब होता है,
दुनिया सारी जीत गयी सी लगती है !
जब भी तन्हाई होती है ,
तब मेरी हस्ती मिट गयी सी लगती है !
आँखों में तेरी कशिश है वो,
कि ये दिल खींचीं-खीचीं सी लगती है !
मैं तो ठहरा बुद्धू अनाड़ी,
तेरी सोहबत से कुछ-कुछ सीखी सी लगती है !
दर्द भरा है सीने में लेकिन,
जब करीब होती हो तब बेफिक्री सी लगती है

Wednesday, June 15, 2011

मन की बात चंद पंक्तियों में ...


ये वक़्त का तकाज़ा है या नसीब का खेल
सच्चे ईमानदार क्यूँ होते जा रहें हैं फेल
कैसी ये राजनितिक समीकरण है कैसा ये भ्रष्टाचार से मेल
क्यूँ बढ़ रहा है जुर्म अपराधियों को होती नहीं क्यूँ जेल
...........................
कैसा ये सत्ता का मोह है,
खुद
कि मातृभूमि पर करते कुठाराघात है !
कौन सी कोंख से देश द्रोही पैदा होते,
क्या इनकी जात है !
गरीबों का खून चुसना,सच्चों का दमन करना,
इनके लिए शाबासी कि बात है !
ये देश को खोखला करने कि,
चाहत का अभी सिर्फ शुरुवात है !
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वह क्या बात है !
वह भारत के निति-निर्धारकों तुम्हारी क्या बात है
कसाब को दामाद बनाते निर्दोषियों को सूली पर चढाते
वह क्या बात है !
हवाला कि हवा चली थी तब सूटकेस पर नज़र जमी थी
बदकिस्मती देश कि भ्रष्ट लोगों के नीचे सच्चों कि बारात है
वह क्या बात है !
...........................
सत्याग्रह को ग्रहण लग गया अत्याचारी राहूओं से !
क्या ऐसा हो नहीं सकता उखाड फेकें इन्हें सबल भुजाओं से !!

मेरे शब्दों को सम्हाल लो कविता बनकर...


चलो तुम्हे अब कोई नाम दे ही दूँ...
कब तक फिरती रहोगी अनामिका बनकर

कब तक कान तरसेंगे तेरी बोल सुनने को...
चलो अब सुना दो कुछ तुम सुनीता बनकर

कब तक सुनी रहेगी जिंदगानी इस तरह...
चलो अब कोई तान छेड़ दो संगीता बनकर

कब तक मेरी ऑंखें अंधकारमय रहेंगी...
चलो अब सूरत प्यारी दिखा दो सुनयना बनकर

कब तक प्यासी रहेगी जिह्वा मेरी...
चलो अब प्यास बुझा दो सरिता बनकर

कब तक मेरी फरियाद ठुकराई जाएगी...
चलो अब मेरी प्रार्थना सुन लो विनीता बनकर

कब तक जिंदगी के जंग में संघर्ष करता रहूँ...
चलो जीत लो मेरी जिंदगानी तुम रंजीता बनकर

कब तक मेरे अल्फाज़ लडखडाते रहेंगे...
चलो अब मेरे शब्दों को सम्हाल लो कविता बनकर

Saturday, June 4, 2011

हम तो पानी अन जी...


हम तो पानी अन जी
दूध म मिलाहु ता दुध बन जाबो
दही म मिलाहु ता दही बन जाबो
हम तो पानी अन जी
प्यास लगही ता प्यास बुझबो
आगि लगही तो वोहू ला बुझबो
हम तो पानी अन जी
तबियत बिगाड़ही ता दवाई म मिला लव दवाई बन जाबो
अऊ कहूँ दारू म मिलाहु ता दारू बनके मस्ती ला चढ़हाबो
हम तो पानी अन जी
अमृत म मिलाहु ता सबके जान बचाबो
ज़हर म डारहु ता सबके काल ला संग म लाबो
हम तो पानी अन जी
नाली म बोहा हु ता गन्दगी बढ़ाहबो
खेत म डारहु ता खुशाली ला लाबो
हम तो पानी अन जी
बचा हु कहूँ मोला ता हरियाली हा आही
नई बचाहु ता चारो मुड़ा सुख्खा बढ़ जाही
हम तो पानी अन जी
गंगा जल म मिलाहू ता गंगा जल बन जाबो
अरपा नदिया म बोहहू ता सोझ्झे पानी कहाबो
हम तो पानी अन जी
हमन पानी अन-पानी अन
औ पानीये रहिबो
दरद जम्मो दुनिया के ला सहीबो
हम तो पानी अन जी