Saturday, January 14, 2012

हम तो दिलजले हैं...


तू क्यूँ दूर है ?
फिक्र नही मंजिल मिल जायेगा
फासलों का क्या है ?
बढ़ता है तो बढ़ने दिया जायेगा
राहों में फूल नही है ?
काँटों में चलने में भी मज़ा आयेगा
दुओं में शामिल नहीं है ?
खुदा से अब तो लड़ने में मज़ा आयेगा
तेरे शहर में अँधेरा है ?
दिल ज़लाकर उजाला कर लेंगे, हम तो दिलजले हैं

6 comments:

  1. दिल ज़लाकर उजाला कर लेंगे, हम तो दिलजले हैं

    सुंदर रचना...

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    1. इंदु जी आपके अनमोल कथन के लिए धन्यवाद एवं आभार

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  2. खुदा से अब तो लड़ने में मज़ा आयेगा
    तेरे शहर में अँधेरा है ?
    waaah sach me dil se likhi gayee rachna..

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  3. मुकेश सिन्हा जी
    बहुत दिनों बाद किसी ने कमेन्ट किया बड़ी ख़ुशी हुई है... वैसे आप लोगों की कविता पढ़कर हम भी सिख रहे हैं लिखना ऐसे ही घुमने आते रहिये .. धन्यवाद

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  4. tumhari likhi rachnao mein se ek bahot hi sundar rachana hai ye . mujhe bahot hi achchhi lagi .दुओं में शामिल नहीं है ?
    खुदा से अब तो लड़ने में मज़ा आयेगा ..................... best lines

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    1. अंजलि जी, नमस्कार
      कविता आपने पसंद की अच्छा लगा....यूँ ही पढ़ते रहिएगा और उत्साह बढ़ाते रहिएगा
      धन्यवाद...

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