Friday, October 12, 2012

कैसे यकीं दिलाऊं...

तुम अलबेली छैल छबीली, मैं कांटा जीवन मेरी कंटेली,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का

तुम सुलझी राजकुमारी मुझमें अब तक उलझी गँवारी,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..
 
तुम हो भोली भली सी मैं बिगड़ा नवाब,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का !

तुम रहती बंगलों में मैं बसता हूँ जंगलों में,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का !

तुम विदुषी सर्व ज्ञानी मैं अबूझमाड़ का अज्ञानी
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..

तुम एक्टिवा टिकाऊ मैं खटारा स्कूटर बिकाऊ,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..
 
तुम सात सुरों की की सरगम मैं डी जे का डरगम,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का.
 
तुम अंग्रेजी में खेलती खेल मैं अंग्रेजी मे फ़ैल,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..

तुम धनी भाग्यवती मैं धन अर्जन करता मंद गति
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..

तुम स्वप्न सुंदरी सी प्यारी मैं कीचड़ मिटटी की क्यारी,
फिर कैसे यकीं दिलाऊं अपनी मुहब्बत का..

मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयागाथा मन की बातें 

1 comment:

  1. बहुत खूब लिखा आपने | सुंदर भावभिव्यक्ति |

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    यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!

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