Tuesday, January 24, 2012

श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती



काश मैं होता जल निर्मल, तुम निर्झर सरिता होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
मैं तन्हा होता अकेला सा, तुम भी तन्हा होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
खमोशी फैली होती फिज़ाओं में, तुम भी खामोश होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
काश खुशबु बहती हवाओं में, तुम सुंगंध पहचान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
ह्रदय मेरा पर्वत विशाल, तुम भी पत्थर दिल होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
चर्चा इश्क का गली-गली, काश हाल-ए-दिल तुम जान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !



Saturday, January 14, 2012

हम तो दिलजले हैं...


तू क्यूँ दूर है ?
फिक्र नही मंजिल मिल जायेगा
फासलों का क्या है ?
बढ़ता है तो बढ़ने दिया जायेगा
राहों में फूल नही है ?
काँटों में चलने में भी मज़ा आयेगा
दुओं में शामिल नहीं है ?
खुदा से अब तो लड़ने में मज़ा आयेगा
तेरे शहर में अँधेरा है ?
दिल ज़लाकर उजाला कर लेंगे, हम तो दिलजले हैं

Friday, January 6, 2012

ये वक्त नहीं है आसान...


ये वक्त नहीं है आसान,
जद्दोजहद से हैं तू अनजान !
ज़ालिम है जमाना बेदर्द बड़ा,
कभी तो मेरा कहना मान !
वक्त ने ठुकराया वक्त ने तडफाया है,
वक्त ही सम्हालेगा वक्त अपनायेगा !
वक्त कब रहा किसी का गुलाम,
वक्त के साथ चलने वालों को मेरा सलाम !

"मुकेश" हृदयगाथा : मन की बातें

Wednesday, January 4, 2012

मेरी भूली बिसरी चंद पंक्तियां ...



मुझको किसी कि तारीफ कि परवाह नहीं,
मुझे तो बस अपनी आलोचनाओ का डर है !
मुझको फिसल गिरने से कोई फर्क नहीं पड़ता है,
तेरे कदम ग़र डगमगा जाये तो दिल धडक पड़ता है !
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टूटे दिल का तराना लोग सुन नहीं सकते,
खामोश दिल से कहे गये शब्दों समझ नहीं सकते
कमबख्त ज़मान हो गया है ज़ालिम मतलबी,
लोगों कि मईयत में भी वज़ह जाने बिना रह नहीं सकते
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तुम रूठी हो ऐसे तुम्हे मनाऊँ कैसे,
अपने दिल के जस्बात दिखाओं कैसे !
अरसा बीत गया तुम्हारी खिलखिलाहटों के बीन,
नाराज़ हो ऐसे क्या जतन करूँ, हंसाऊँ तुम्हे मैं कैसे !
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यु नादानी से दिल को न दुखाया करो,
भूल से हुई भूल को मिटाया करो
दिल पे लगी चोट को ऐसे न छुपाया करो,
हर किसी को मन कि बात बताया न करो
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बड़ी देर हो गयी है तेरी राह देखते,
उफ़ जैसे सदियाँ गुजर गई है
आ गयी हो जो मेरे सपनो में तुम,
फिर तो पुरी जिंदगी संवार गई है
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दिल से ही दिल जोड़ी जाती है,
फिर क्यूँ दिल से ही दिल तोड़ी जाती है !
दस्तूर-ये-दुनिया क्या यही है ?
क्या मुहब्बत में ऐसी रिवाजें होती है!
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खुदा की तस्वीर नहीं पास मेरे, तेरी तस्वीर की बंदगी की है !
तुझ पर लुट गये हैं हम, न्योछावर तुझ पे जिंदगी की है !!
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तन्हा रास्ता है, तन्हा तन्हा सा मुसाफिर हूँ
भीड़ से भरा रास्ता है. फिर भी अकेला गुज़र रहा हूँ
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कुछ बात तो है तुम में कि ये नज़र तुमसे हटती नहीं,
सच्ची दोस्ती में लाख तकलीफें हो दोस्ती घटती नहीं
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निगाहों पर है निशाना तुम्हारा...निशाने पर हैं जमाना सारा
खुबसूरत तो तुम हो बख़ुदा....उस पर चेहरा है सबसे प्यारा
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मुकेश गिरी गोस्वामी : हृदयगाथा