जब लिखने बैठता हूँ तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है
मेरे शब्दों में तेरे शब्दों की झलक - छलक जाती है
मेरे लिखे पंक्तियों को छुप-छुपकर पढ़ा करती थी
जाने क्यूँ सामने आने से कतराती और डरा करती थी
सुनहली आँखों में अनसुलझे सपने बुना करती थी
सपनो की सच्चाई ज़ाहिर न हो हरसूं गुना करती थी
गुस्सा होता था चेहरे पर दिल में अरमान पनपाती थी
गुमनाम तन्हाइयों में मुझको करीब दिल के पाती थी
हाँ तेरी जुदाई का दर्द पल-पल नासूर हुए जाती है
किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है
मुकेश गिरी गोस्वामी : हृदयगाथा
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