काश मैं होता जल निर्मल, तुम निर्झर सरिता होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
मैं तन्हा होता अकेला सा, तुम भी तन्हा होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
खमोशी फैली होती फिज़ाओं में, तुम भी खामोश होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
काश खुशबु बहती हवाओं में, तुम सुंगंध पहचान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
ह्रदय मेरा पर्वत विशाल, तुम भी पत्थर दिल होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
चर्चा इश्क का गली-गली, काश हाल-ए-दिल तुम जान रही होती