काश मैं होता जल निर्मल, तुम निर्झर सरिता होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
मैं तन्हा होता अकेला सा, तुम भी तन्हा होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
खमोशी फैली होती फिज़ाओं में, तुम भी खामोश होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
काश खुशबु बहती हवाओं में, तुम सुंगंध पहचान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
ह्रदय मेरा पर्वत विशाल, तुम भी पत्थर दिल होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
चर्चा इश्क का गली-गली, काश हाल-ए-दिल तुम जान रही होती
बहुत खूब.....सुन्दर कविता है |
ReplyDeleteसादर धन्यवाद एवं आभार
DeleteMUKESH AAP BAHOT HI ACHCHHA LIKHTE HAI . AUR AISE HI LIKHTE RAHE . LIFE MEIN BAHOT PROGRESS KARE . JO CHAHE HASEEL KARE . AUR YE KASHHH WORD AAPKI DICTIONARY SE NIKAL JAYE HUMESHA K LIYE . GOD BLESS U ...............
ReplyDeleteThank you anjali ji
Deleteवाह मुकेश जी ,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने,
ख़ुशी हुयी आप हमारे ब्लॉग पर आये ,
आते रहिएगा ..
Thank u
Deleteचर्चा इश्क का गली-गली,
ReplyDeleteकाश हाल-ए-दिल तुम जान रही होती
और श्रृंगार से सजी मेरी कविता होती !
Wah! Kya baat hai!
शास्त्री जी सादर धन्यवाद एवं आभार
ReplyDeleteक्षमा जी नमस्कार
ReplyDeleteस्वागतम सहित सादर धन्यवाद एवं आभार..