Sunday, November 18, 2012

मेरी कहानी जिन्दा रहेगी ...

जिंदगी में जब भी,
तुम्हारे "साथ" की
जरुरत होती है
हरसूं क्यूँ तुम,
मुझसे "अगणित"
अनंत दूर होती है
तेरे "कोमल"
शब्दों की ध्वनी से,
मन "तनाव" रहित
हो जाता है
जब तुम
"किलकारियां" लगाती हो
किसी बच्चे की तरह
मेरे "होंटों" में
अजब "संतुष्टि" भरा
"मुस्कान" स्वतः ही
आ जाता है
तेरी "दुरी" मुझे
इतना क्यूँ सताता है
मन "अधीर" हो जाता है
बहुत तडफाता है
हर "लम्हा" तेरे आने का
 "ख्वाब" ये सजाता
फिर भी तुम
क्यूँ नही आती
क्यूँ मुझे नही अपनाती
शायद "तुम्हे" भी
इन्तिज़ार है मेरी "मईयत"  का
मैं तो "दफ़न" हो जाऊंगा
उम्मीदे मेरी
"जिन्दा" रहेगी
जब भी किसी "नादाँ" की
बात चलेगी
तेरे "लबों" में
मेरी "कहानी" जिन्दा रहेगी

मुकेश गिरि गोस्वामी : मन की बातें

Wednesday, November 14, 2012

दीपावली ...दीपावली ...दीपावली

दीपावली  : लो फिर  हम सब ने दिवाली बड़े धूम धाम , उल्लास पूर्ण मना लिया है , एक दुसरे को बधाई दे दी और स्वीकार ली। दिवाली गुजर जाने पर फिर वही भागमभाग व्यस्ततम जीवन हम पर हावी होने लगी।।
वर्षों से मैंने दिवाली पर्व नहीं मनाया कई साल पहले मेरे मन में एक सवाल उपजा की आखिर हम दिवाली मनाते क्यूँ हैं और इस पर्व को मनाने  से लाभ क्या है ? प्रतिवर्ष दीपावली पर्व में हम लाखो-करोडो नहीं नहीं शायद  अरबो-खरबों रुपये इन दिनों में खर्च कर देते हैं बेशक हमें खुशियाँ प्राप्त होती है, और मन को तसल्ली होती होगी की पड़ोसियों से हमने ज्यादा सामान ख़रीदा , हमारा मकान  ज्यादा बढ़िया सजा हुआ था इत्यादि इत्यादि ...  एक पल के लिए सोचिये की हम सभी भारतीय दिवाली में इतने पैसे खर्च कर देते हैं यदि इन पैसों का 20% भी हम देश हित में समर्पित करते तो क्या लाभ होता कितने गरीबो को भोजन प्राप्त होता, कितने केंसर या गंभीर रोगियों का इलाज संभव हो पता, कितने अनाथ - असहाय लोगों को सहारा मिल पाता ? यदि इतने पैसे देश के विकास में खर्च होते तो भारत का हर गाँव सिंगापूर होता, हमारे मोहल्ले के सड़कों में गन्दगी नही बहते होती, हर गली में सड़कों का निर्माण हो जाता , देश के एक भाग से दुसरे भाग को जोड़ने वाली राष्ट्रीय राज मार्ग की हालत खस्ता न होती, रेलवे और हवाई सेवा बेहतर से बेहतरीन होता परन्तु दुर्भाग्य की बात इस तरफ हम अपना योगदान नहीं दे पाते देश क़र्ज़ में डूब रहा है , गरीब और गरीब होते जा रहे हैं और अमीर अमीरी के रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे हैं, आम भारतीय एक अजीब से असंतुष्टि और घुटन से ग्रसित होता जा रहा है,
फिर भी हम भारतीय विभिन्न तरह के त्योहारों में अपने वार्षिक आमदनी के एक बड़ा हिस्सा फिजूल खर्ची में लुटा देते हैं ... क्या हम आज एक संकल्प लेने का पुरुषार्थ रखते हैं की आज से प्रत्येक त्योहारों में हम फिजूल खर्ची बंद कर प्रेम, ख़ुशी, उमंग, उल्लास, सदभावना, सहयोग को अधिक खर्च कर के भारतीय त्योहारों को अधिक गौरवशाली, आकर्षक मानाने का प्रयास करें।
इस लिए मैंने दिवाली में फिजूल खर्ची बंद कर दी है क्या आप भी ऐसा कर सकते हैं ?
जय हिन्द जय भारत
मुकेश गिरि गोस्वामी 

Wednesday, November 7, 2012

हसरतें...


तेरी प्रीत बसी दिल में उसे छुपायें कैसे,
अपनी हसरतों को जुबान पे लायें कैसे
दूर है वो, प्यार अपना उससे बढायें कैसे,
मजबूर हूँ मैं इस कदर, अपनापन जतायें कैसे
है वो अमानत, उसे अब अपनायें कैसे
लिखा है ख़त खून से उसे जलायें कैसे
मन में तस्वीर तेरी, संगदिल तुझे दिखायें कैसे
अधुरा जीवन तुम बिन, तुझपे जीवन लुटायें कैसे
बिन तेरे यूँ तन्हा जीवन बितायें कैसे,
हे ईश्वर क्या करूँ ? तू ही बता उसे पायें कैसे

मुकेश गिरि गोस्वामी हृदयगाथा : मन की बातें