मेरे मासूम चेहरे से कोई,
नज़रें हटाते क्यूँ नही ?
मेरे बढ़ते हुये किताबों पर,
नज़रे डताते क्यूँ नहीं ?
किस्से मासूमियत के,
आप ही लोग बताते हो !
फिर क्यूँ भविष्य की चिंता,
में हमें सताते हो ?
मेरे कदमों की लडखडाहट से,
घबराते क्यूँ हो ?
क्या मैं पहले कभी,
चलते समय गिरा नही हूँ ?
विश्वास रखो माँ,
मेरे कदम लडखडाये कोई बात नहीं !
तेरे विश्वास, तेरे अरमान और मेरे सपने,
कभी नहीं लडखडायेंगे !
मुकेश गिरि गोस्वामी हृदयगाथा : मन की बातें