Wednesday, March 16, 2011

तुमसे कभी रोया न गया ......




प्यार मुझको भी था तुमको भी था ,
तुमने कहा नहीं और हम भी कह ना सकें !

गम और दर्द में भी मुस्कुराना पड़ता था,
तुमसे कभी रोया न गया और हम भी रो न सकें !

तुमसे ही घर कि आबरू और तुमसे ही मर्यादा था,
दर्द तडफ था सीने में पर परम्परा निभाने का वादा था !

मोहब्बत तो करते हैं पर प्रेम तुमको मुझसे ज्यादा था,
लगता है जैसे हमने संस्कारों को खुद पर ही लादा था !

सुन्दर परियों के बीच में भी तुम्हारा मुखड़ा मुझको भाता था,
देख के तुमको दिल में आवाज़ थी उठती कई जन्मो का नाता था !

चली गयी जब से परदेश को तुम गीत विरह के मैं गाता हूँ,
सुना है शहर तेरा सुनी है गलियां फिर भी चक्कर मैं लगता हूँ !

ना कभी बहका हूँ ना कभी लडखडाया हूँ,
फिर तुमने क्यूँ पिलाने में कमी की है !

सिर्फ तेरी मुहब्बत को पाने के लिए मैंने,
कभी आसमां को ज़मी तो कभी ज़मीं को आसमां की है !

1 comment:

  1. aap bahot hee achchha likhate hai mukesh .mujhe kavita ,kahaniyon aur shero shayari mein bilkul bhee dilchaspi nhi thi .par ek aap aur INDU bhua dono ki wajah se apne aap me kuchh badlaw mahsus kar rahi hun. AAP logo ki tarh bahot achchha likhana to nhi aata hai mujhe ,par haa achchha lgta hai inhe padhna .
    all the best mukesh ,humesha aise hee likhte rahe .

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