जब लिखने बैठता हूँ तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है
मेरे शब्दों में तेरे शब्दों की झलक - छलक जाती है
मेरे लिखे पंक्तियों को छुप-छुपकर पढ़ा करती थी
जाने क्यूँ सामने आने से कतराती और डरा करती थी
सुनहली आँखों में अनसुलझे सपने बुना करती थी
सपनो की सच्चाई ज़ाहिर न हो हरसूं गुना करती थी
गुस्सा होता था चेहरे पर दिल में अरमान पनपाती थी
गुमनाम तन्हाइयों में मुझको करीब दिल के पाती थी
हाँ तेरी जुदाई का दर्द पल-पल नासूर हुए जाती है
किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है
मुकेश गिरी गोस्वामी : हृदयगाथा
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बहुत ही खुबसूरत है पोस्ट।
ReplyDeleteइमरान जी अन्य कविताओं पर भी निगाह घुमाएँ
Deleteधन्यवाद
वाह
ReplyDeleteबहूत सुंदर.
मिठी सी याद का सुंदर वर्णन ....
बेहतरीन रचना.....
रीना मौर्य जी, नमस्कार
Deleteब्लॉग पर आपका स्वागत है. कविता आपको पसंद आई..
उम्मीद है निरंतर आपका आवागमन होता रहेगा..
आपके वक्तव्या का हमेशा इन्तिज़ार रहेगा...
धन्यवाद
हाँ तेरी जुदाई का दर्द पल-पल नासूर हुए जाती है
ReplyDeleteकिताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है
BAHUT SUNDER RACHNA ...
BADHAI EVAM SHUBHKAMNAYEN.
अनुपमा जी नमस्कार
Deleteआपको कविता पसंद आई
सादर धन्यवाद
हमेशा आप यहाँ आमंत्रित हैं
बहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeletevah kya baat hai ... pyaar ki meethi gazal ...
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