Wednesday, March 23, 2011

प्रतीक्षा कि अगन...



विरह के वेदना में मैं क्यूँ जल रहा हूँ ,
मौत के आगोश में मैं जैसे पल रहा हूँ !
प्रतीक्षा कि अग्नि में जल रहा हूँ ,
फिर भी अंगारे जिस्म में मल रहा हूँ !
कौन है कैसी है वो..? सपने नए बुन रहा हूँ ,
भीड़ के कोलाहल में भी मधुर तान उसकी सुन रहा हूँ ,
धडकनों कि थाप पे मिलन कि घड़ियाँ गिन रहा हूँ !
खाली है दामन फिर भी खुशियाँ मैं तेरे लिए चुन रहा हूँ ,
अनजानी हो या पहचानी सोच असमंजस में गुन रहा हूँ !
किसका इन्तिज़ार है..? समझ नहीं पा रहा हूँ ,
बस इन्तिज़ार ही इन्तिज़ार किये जा रहा हूँ !

2 comments:

  1. खूब संवारा है अल्फाजों को तन्हाइयों के दामन में की प्यार का हर गुलशन आफ़ताब हो गया...
    लगता है बसंत की बेलायें रजनी और महक के मिलन में चरागों सा गुलज़ार हो गया

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