दर्द में नशा है,
दर्द में मज़ा है
दर्द में सज़ा है,
दर्द में वफ़ा है
दर्द में रज़ा है,
दर्द से खफा है
दर्द ये रंगीन है,
दर्द ये संगीन है
दर्द में गमगीन है,
दर्द मंजीत है
दर्द संजीत है,
दर्द से रंजीत है
दर्द ये गुंजित है,
दर्द में बेदर्द है
दर्द में क्यूँ मर्द है,
दर्द ये सर्द है
दर्द में सत्य है,
दर्द का ये मत्य है
मुकेश गिरि गोस्वामी हृदयगाथा : मन की बातें...
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteशेअर करने के लिए आभार!
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Deleteशास्त्री जी सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपको कविता पसंद आई जिसके लिए शुक्रिया, आपका कमेन्ट मेरे लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है,
धन्यवाद
bahut badiya
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