जब लिखने बैठता हूँ, तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है!
किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है!!
Wednesday, September 21, 2011
" कोई मुसाफिर "
चाँद आज क्यूँ मायूस है, सितारे क्यूँ खामोश है ! चल रही पवन धीमे-धीमे क्यूँ, कैसा ये अहसास है ! दूर ठहरा है कोई मुसाफिर, परदेशी अनजाना है ! क्या जादू है उसमे, दिल ने क्यूँ उसको अपना माना है !
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteपहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteसंजय जी आपके कमेन्ट पढ़कर ख़ुशी हुई ब्लॉग पर आपका हमेशा स्वागत है, आपके बहुमूल्य सुझाव लाभदायक और उत्प्रेरक लगेंगे..
ReplyDeleteआभार सहित धन्यवाद !!!