जिंदगी में जब भी,
तुम्हारे "साथ" की
जरुरत होती है
हरसूं क्यूँ तुम,
मुझसे "अगणित"
अनंत दूर होती है
तेरे "कोमल"
शब्दों की ध्वनी से,
मन "तनाव" रहित
हो जाता है
जब तुम
"किलकारियां" लगाती हो
किसी बच्चे की तरह
मेरे "होंटों" में
अजब "संतुष्टि" भरा
"मुस्कान" स्वतः ही
आ जाता है
तेरी "दुरी" मुझे
इतना क्यूँ सताता है
मन "अधीर" हो जाता है
बहुत तडफाता है
हर "लम्हा" तेरे आने का
"ख्वाब" ये सजाता
फिर भी तुम
क्यूँ नही आती
क्यूँ मुझे नही अपनाती
शायद "तुम्हे" भी
इन्तिज़ार है मेरी "मईयत" का
मैं तो "दफ़न" हो जाऊंगा
उम्मीदे मेरी
"जिन्दा" रहेगी
जब भी किसी "नादाँ" की
बात चलेगी
तेरे "लबों" में
मेरी "कहानी" जिन्दा रहेगी
मुकेश गिरि गोस्वामी : मन की बातें
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