जब लिखने बैठता हूँ, तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है!
किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है!!
Wednesday, March 5, 2014
लाज़मी सा है ..
सुना था "वादे" तो तोड़ने के लिए होते हैं, आज उसके कारण "ख़ामोशी" से रोते हैं कैसे "यकीं" दिलाऊँ अपनी "बेबसी" का शायद "बैचैन" तड़फ़ना ही सजा है "बेवफाई" का उदासी का "आलम" भी "अंजाना" सा है "अदि " तीमारदारी तुम्हारी "लाज़मी" सा है
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