मैं रूठ तो जाऊँ, वो मनाने नहीं आते !
इश्क के वादों को, निभाने नहीं आते !
नाराज़ हो कर क्या, तुम खुश रह पाओगे !
छुप-छुपके आँशु, क्या नहीं बहाओगे !
फिर प्रिये, ऐसे दिखावे के लिए क्यूँ रूठना !
फिर दिखावटी बातों को, यूँ क्यूँ गुथना !
चलो अपनी खिलखिलाहट को, बिखेर दो !
मौसम में खुशियाँ घोल, बाँहों में समेट लो !
इश्क के वादों को, निभाने नहीं आते !
नाराज़ हो कर क्या, तुम खुश रह पाओगे !
छुप-छुपके आँशु, क्या नहीं बहाओगे !
फिर प्रिये, ऐसे दिखावे के लिए क्यूँ रूठना !
फिर दिखावटी बातों को, यूँ क्यूँ गुथना !
चलो अपनी खिलखिलाहट को, बिखेर दो !
मौसम में खुशियाँ घोल, बाँहों में समेट लो !
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeletethank you Sanjay bhaskar ji
Deleteकल 18/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
thank you mathur saheb
Deletekripya link mujhe punah bhejne ka kasht karen .. dhnywad
humesha ki tarah bahot achchha .aur practical bhi . sabhi shabd sachche . wo baat alag hai ki ladkiyon aur mahilao ko ye baat jamti nhi hai karna. chalo koshish to ki hee ja sakti hai .
ReplyDeletethanks to you again
Deletebahut hi accha likha hai apne
ReplyDeleteThanks reena jee
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