उन "वादियों" और नजदीकियों का कैसे अहसास दूँ ,
घबराना क्यूँ, मैं दूर होकर भी तेरे पास हूँ !
तेरी "छुवन" और "पवित्र मन" से सज्ञान हूँ ,
तेरे "दर्द और तडफ" से अब नहीं अनजान हूँ !
कैसे "अनसुलझे" सवालों का जवाब दूँ ,
क्यूँ मैं तुझे झूठे ख्वाब दूँ !
कैसे करूँ "इबादत" खुदा से कैसे तुझे मांग लूँ ,
जिया नहीं जाता तेरे बिन कैसे अब अपनी "जान" दूँ !
घबराना क्यूँ, मैं दूर होकर भी तेरे पास हूँ !
तेरी "छुवन" और "पवित्र मन" से सज्ञान हूँ ,
तेरे "दर्द और तडफ" से अब नहीं अनजान हूँ !
कैसे "अनसुलझे" सवालों का जवाब दूँ ,
क्यूँ मैं तुझे झूठे ख्वाब दूँ !
कैसे करूँ "इबादत" खुदा से कैसे तुझे मांग लूँ ,
जिया नहीं जाता तेरे बिन कैसे अब अपनी "जान" दूँ !
मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयगाथा : मन की बातें ...
बहुत इबादत से लिखी रचना मुकेश जी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
:-)
रीना जी, मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
Deleteआपके कमेन्ट अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है... धन्यवाद..