Monday, August 6, 2012

कैसे तेरी तारीफ लिखूं ...

ऑंखें तेरी झरना सी,
खुशियाँ उनमे बहती हो जैसे,
सूरज लालिमा को तरसे,
लाली लबों में बसी हो जैसे !
माथे पर शीतल किरणे झलकती है,
चंद्रप्रभा हो जैसे,
केश तुम्हारे काले घने बलखाती है,
नागिन हो जैसे !
स्वाभाव आकर्षक है,
फूल कोई गुलाब का हो जैसे !
खुबसूरत हो, हाँ खुबसूरत हो,
खिला हुआ कमल हो जैसे !
कैसे तेरी तारीफ लिखूं,
शब्द कम हो गए हो जैसे !
मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयगाथा मन की बातें

3 comments: