सब से छुपाकर दर्द में जो वो मुस्कुराया …
उसकी हंसी ने तो आज भी मुझे रुलाया ….
दिल से उठ रहा था दर्द का धुंआ …
चेहरा बता रहा था की सब कुछ उसने लुटाया …
आवाज़ में में धोका था आँखों में नमी थी …
और कह रहा था के मैंने सब कुछ भुला लिया …
जाने क्या उसको मुझसे थीं शिकायतें …
तनहाइयों के शहर में खुद को बसा लिया …
खुद वो हमसे बिछड़ कर अधूरी सी हो गई ….
मुझको भीड़ में भी तन्हा बना दिया …
मुकेश गिरि गोस्वामी
हृदयगाथा : मन की बातें
उसकी हंसी ने तो आज भी मुझे रुलाया ….
दिल से उठ रहा था दर्द का धुंआ …
चेहरा बता रहा था की सब कुछ उसने लुटाया …
आवाज़ में में धोका था आँखों में नमी थी …
और कह रहा था के मैंने सब कुछ भुला लिया …
जाने क्या उसको मुझसे थीं शिकायतें …
तनहाइयों के शहर में खुद को बसा लिया …
खुद वो हमसे बिछड़ कर अधूरी सी हो गई ….
मुझको भीड़ में भी तन्हा बना दिया …
मुकेश गिरि गोस्वामी
हृदयगाथा : मन की बातें
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