जब लिखने बैठता हूँ, तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है!
किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है!!
Wednesday, April 3, 2013
कोई बात नहीं !!!
पहले तो रोज दीदार करती थी, छिप-छिपकर आँखों से वार करती थी , अब यह हाल है कि, ख़त से भी मुलाक़ात नहीं, रातों के ख्वाब सुनाती थीं, मुझे तुम दिन में, उससे कहने को तुम्हे क्या कोई बात नहीं ! मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयगाथा मन की बातें
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