क्या लिखूं तू बेवफा जो हो गयी है
झूट के बाज़ार कहाँ खो गयी है
उम्मीद न थी की तू बेरहम होगी
सोचा था साथ जन्मो तक दोगी
मगर ख्वाब हकीकत से तोड़ दिया
मेरी मुहब्बत को धोका दे छोड़ दिया
मौत से तो लड़ जीत आया मैं
फिर क्यूँ खुद से तुझको दूर पाया मैं
मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयागाथा -मन की बातें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (16-09-2013) गुज़ारिश प्रथम पुरूष की :चर्चामंच 1370 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ReplyDeleteबहुत खूब -बहुत सुन्दर !
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बहुत सुंदर
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