कुछ देर पहले तुमको
देखा था ख्यालो में तुम ही तो थी
हाँ, कुछ देर पहले ही तो
तुम्हारी जुल्फ़े लहराई तो थी
हाँ, कुछ देर पहले ही तो
पिताम्बर साड़ी में चमचमाता चेहरा
हाँ, गुज़रा तो था मेरे करीब से
हाँ, कुछ देर पहले ही तो
नजरें क्षण भर टकराई तो थी
हाँ, तब स्नेहवश गालों पे
गुलाबी रंग शरमाई तो थी
हाँ, कुछ देर पहले ही तो
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-10-2019) को " सभ्यता के प्रतीक मिट्टी के दीप" (चर्चा अंक- 3496) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
thanks
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