Saturday, November 2, 2019

ज़रा सी आहट भी ना हुई...


बिछुड गए तुम मेरे दुनिया से
और ज़रा सी आहट भी ना हुई
ज़ख्म दिये तुमने इतने गहरे
और ज़रा सी आहट भी ना हुई
टुकड़े टुकड़े कर दिये अरमान मेरे
और ज़रा सी आहट भी ना हुई
बिखर गए हैं सारे सपने अपने
और ज़रा सी आहट भी ना हुई
टूटा सबर-ऐ-बान्ध झटके से
और ज़रा सी आहट भी ना हुई
बन गये तुम ज़लिम-ऐ-सितमगर
और ज़रा सी आहट भी ना हुई

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