जी हाँ हम तो सेवक हैं श्रीमान
जब आज्ञा दो हम होते हाज़िरमान
कहीं भी जब हम जाते ना बनते हैं मेहमान
फितरत ऐसी कि निंदक का भी करते हैं गुणगान
भ्रष्टाचार के दलदल में क्यूँ फसते हो विद्यावान
मेहनत कर ले अजी मेहनत कस इन्सान
सुन लो खून-पसीने कमाई से भी बनते हैं धनवान
शुद्ध शाकाहारी होकर भी हैं यहाँ पहलवान
सब कुछ जानकर भी क्यूँ बनते हो अनजान
देश पे मीट जाएँ ग़र तो क्या होगी इस से बढ़कर शान
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