
जब लिखने बैठता हूँ, तस्वीर तेरी आँखों में छा जाती है! किताबों में दफ़न फूलों से अब तलक तेरी खुशबु आती है!!
Friday, October 28, 2011
Wednesday, October 19, 2011
देश के लिए.....
जिंदगी जी सकूँ,
कुछ ऐसा ज्ञान दो
देश के लिए कुर्बान हो जाये,
ऐसी शान दो
गौरवन्वित हो मस्तक मेरा,
ऐसा कोई काम दो
जिन्दगी गुजरा संघर्षमय,
अब कुछ आराम दो
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मुकेश गिरी गोस्वामी "हृदयगाथा"
Sunday, October 16, 2011
मैं रूठ तो जाऊँ.....
मैं रूठ तो जाऊँ, वो मनाने नहीं आते !
इश्क के वादों को, निभाने नहीं आते !
नाराज़ हो कर क्या, तुम खुश रह पाओगे !
छुप-छुपके आँशु, क्या नहीं बहाओगे !
फिर प्रिये, ऐसे दिखावे के लिए क्यूँ रूठना !
फिर दिखावटी बातों को, यूँ क्यूँ गुथना !
चलो अपनी खिलखिलाहट को, बिखेर दो !
मौसम में खुशियाँ घोल, बाँहों में समेट लो !
इश्क के वादों को, निभाने नहीं आते !
नाराज़ हो कर क्या, तुम खुश रह पाओगे !
छुप-छुपके आँशु, क्या नहीं बहाओगे !
फिर प्रिये, ऐसे दिखावे के लिए क्यूँ रूठना !
फिर दिखावटी बातों को, यूँ क्यूँ गुथना !
चलो अपनी खिलखिलाहट को, बिखेर दो !
मौसम में खुशियाँ घोल, बाँहों में समेट लो !
Saturday, October 15, 2011
जिंदगी बीत जाये...
कारवां चौथ के अवसर में चंद पंक्तियाँ
मेरी चाँद तू
दूर कहाँ खामोश है,
दीदार-ये-चाँद का,
ये कैसा जोश है,
प्रेम की हवा चल रही है,
सभी मदहोश है,
मिलन की बेला आ गई,
तू आई न अब तलक अफ़सोस है !
Thursday, October 13, 2011
छलकने दो अरमानो को..
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किसी तस्वीर से प्रेरित...
Wednesday, October 12, 2011
इसी बात का है मुझे गुरुर...

अजीब ख्यालात से
मन व्याकुल हुआ जा रहा है
जैसे स्कुल के प्रांगण
में तू खिल खिला रहा है
क्यूँ मेरी आंखे आज भी
तेरी झलक पाने को
बेताब हुये जा रहा है
तेरी शरारतों को
सोच कर लगता है
कल की ही तो बात है
सिर्फ आज ही तो
जुदाई की काली रात है
कल फिर सड़क से गुजरते
तू दिखेगा तो जरुर
तू मेरे घर के चक्कर लगता है
इसी बात का है मुझे गुरुर
हाँ यकीन है,
तुम्हारी नज़र खोजती है,
सिर्फ मुझे
पाने की दुआ करती हूँ,
मेरा जीवन अर्पण है
सिर्फ तुझे
बिछड़ के कैसे
जिंदगी जी सकुंगी तुमसे
सोच के
जिया कसमसा जाता है
बैचैनी रात भर तडपाती
और
इसी तरह
दिन निकल जाता है !!!
मन व्याकुल हुआ जा रहा है
जैसे स्कुल के प्रांगण
में तू खिल खिला रहा है
क्यूँ मेरी आंखे आज भी
तेरी झलक पाने को
बेताब हुये जा रहा है
तेरी शरारतों को
सोच कर लगता है
कल की ही तो बात है
सिर्फ आज ही तो
जुदाई की काली रात है
कल फिर सड़क से गुजरते
तू दिखेगा तो जरुर
तू मेरे घर के चक्कर लगता है
इसी बात का है मुझे गुरुर
हाँ यकीन है,
तुम्हारी नज़र खोजती है,
सिर्फ मुझे
पाने की दुआ करती हूँ,
मेरा जीवन अर्पण है
सिर्फ तुझे
बिछड़ के कैसे
जिंदगी जी सकुंगी तुमसे
सोच के
जिया कसमसा जाता है
बैचैनी रात भर तडपाती
और
इसी तरह
दिन निकल जाता है !!!
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मुकेश हृदयगाथा : मन की बातें
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