Wednesday, April 24, 2013

झूठी थी वो... झूठी थी वो



बेवफा वो हुई तो कोई बात नही 
उसके दिल में तो कोई जज्बात नही

झूठ के बूते उसके मकान की नीव टिकी है 
जो अनमोल थी , वो  बेमोल में बिकी है

झूठी थी वो, तड़फना उसका लाजमी है 
उसने देखा न आईना जो रुख पे बेवफ़ाई लिखी है

तन का सुख तो बाज़ारों मे भी बिकता है, 
मन का चोर उसके चेहरे पे भी दिखता है ,

वो  ऊँचे महलों की रानी तो बनती  है  
फिर क्यूँ, बाजारू लोगों से उसकी छनती है 


मुकेश गिरि गोस्वामी : हृदयगाथा मन की बातें 

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