वो भी क्या दिन थे ना
जब दोस्तों के साथ फ़िरा करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब 1 रूपया में 2 समोसे खाया करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब तेरी एक झलक पाने के लिए घंटों खड़ा रहा करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब तुम्हारे घर के पचिसो चक्कर लगाया करते थे
वो भी क्या दिन थे ना
जब जम कर हम होली खेला करते थे
वो भी क्या दिन थे न
जब ईद में घर जा जा कर मिला करते थे
वो भी क्या दिन थे न
जब तुम और हम सिर्फ़ हम हुआ करते थे
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे..
पुरानी बातें ... मगर याद आती हैं और अब कितना कुछ बदल चूका है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeleteबढ़िया। गुजरा हुआ कल ऐसे ही याद आता है।
ReplyDeleteThanks to all of you
ReplyDelete